शनिवार, 2 जुलाई 2022

फेंक जहां तक भाला जाए

कब तक बोझ संभाला जाए?

द्वंद्व कहां तक पाला जाए?

दूध छीन बच्चों के मुख से

क्यों नागों को पाला जाए?

दोनों ओर लिखा हो भारत 

सिक्का वही उछाला जाए!

तू भी है राणा का वंशज,

फेंक जहां तक भाला जाए!

 

इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो,

फिर शीशे में ढाला जाए!

तेरे मेरे दिल पर ताला

राम करें ये ताला जाए!

वाहिद के घर दीप जले तो,

मंदिर तलक उजाला जाए!


कब तक बोझ संभाला जाए?

युद्ध कहां तक टाला जाए?

तू भी राणा का वंशज,

फेंक जहां तक भाला जाए!


English Translation

For how long shall we bear the burden?

For how long shall we try to harbour enmity?

Snatching the milk away from children,

For how long shall we feed snakes?

On whose both sides is written India,

that coin only we should use for any toss [e.g. must take care of Indian interests]

After all, you are lineage of Rana Pratap,

Go ahead, throw the jevelin as far as you can


This errant neighbours must be,

set in its place

This lock on our hearts,

must be wished away

Light in lamp in my house,

must light the nearest temple


For how long shall we bear the burden?

For how long shall we try to delay the inevitable confrontation?

After all, you are lineage of Rana Pratap,

Go ahead, throw the jevelin as far as you can

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने

काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने

खिलजी का चित्तौड़ दुर्ग में एक संदेशा आया

जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया

दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया

यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया

तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे

शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे


दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में

यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में

महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था

था सतीत्व मजबूर ज़ुल्म विजयी स्वर में बोला था


रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर

जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर

अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे

रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे

पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला

वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला


गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया

मगर वीरता का अपमानित ज्वार नहीं मिट पाया

बोला मैं तो बहुत तुक्ष हूँ राजनीती क्या जानू

निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानू

बोली पद्मिनी समय नहीं है वीर क्रोध करने का

अगर धरा की आन मिट गयी घाव नहीं भरने का

दिल्ली गई पद्मिनी तो पीछे पछताओगे

जीतेजी राजपूती कुल को दाग लगा जाओगे

राणा ने को कहा किया वो माफ़ करो सेनानी

यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी


यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला

और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला

महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो

प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो

जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा

महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीँ कटेगा

तुम निश्चिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी

और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी

राणा के सकुशल आने तक गोरा नहीँ मरेगा

एक पहर तक सर कटने पर धड़ युद्ध करेगा

एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे

महा प्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे


शब्द शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी

शंकर के डमरू में जैसे जाएगी वीर भवानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को

पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को

गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले

और बाँकुरे बादल से गोरा सेनापति बोले

खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती हैं

अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती हैं


स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था

दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था

और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे

हर सैनिक सेनापति था लाखों से लड़ सकते थे

एक-एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में

मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में

हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले

पांचो ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले

बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई

हर हर महादेव की ध्वनि से दसों दिशा लहराई


गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा

मातृभूमि चित्तौड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा

कर प्रणाम चढ़े घोड़ों पर सुभग अभिमानी

देश भक्ति की निकल पड़ें लिखने वो अमर कहानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में

उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में

बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है

रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है

एक मगर फ़रियाद उसकी फ़कत पूरी करवा दो

राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो

खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था

बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था


वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया

गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया

बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का

मातृभूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का

यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा

केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा

यह बंधन काटेगा हम राणा को मुख्त करेंगे

घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे

जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ

और उन्हें चित्तौड़ दुर्ग पर वो सकुशल पहुंचाएं

अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना

और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना

राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना

और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना

मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाएं

तिल-तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाएं


ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी

बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी


तो फिर आ बेटा बादल सीने से तुझे लगा लूँ

हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लूँ

यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया

धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया


सावधान कह पुन्ह पथ पर बढ़ें गोरा सैनानी

पूँछ लिया झट से बढ़ कर के बूढी आँखों का पानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||

 

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे

छांट-छांट कर शाही पहरेदारों के सर काटे

लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए

सेनापति की नमक खलाली देख नयन भर आये


पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था

वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था

जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है

मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है

पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा

निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा


दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया

रण मतवाले को रोका जबरन चित्तौड़ पठाया

राणा चलें तभी शाही सेना लहरा कर आयी

खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई

खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना

रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना

टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा

हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा

निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने

काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने


राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था

पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था

कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगें

यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे

रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुम्हें मिलेगी

दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी


यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा

लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा

खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे

लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे

पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से

फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से

वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था

बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था

इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें

गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें


मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था

गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था

वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया

शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया

मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा

किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा

एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था

जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था


ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा

काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा

अरे कायरों नीच बाँगड़ों छल में रण करते हों

किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हों

यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था

मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था

ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी

सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी


अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं

ज़ख़्मी बादल पर लाखों तलवारें खिंची खड़ी थी

कसकर बाँध लिया आँतों को केसरिया पगड़ी से

रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से

अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी

मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आज़ादी


उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था

और इधर बादल लाशों से भूदल पात रहा था

आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई

उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई

मगर हुआ परिणाम वहीँ की जो होना था

उनको तो कण-कण अरियों के सोन तामे धोना था

अपने सीमा में बादल सकुशल पहुँच गए थे

गोरा- बादल तिल-तिल कर रण में खेत गए थे


एक-एक कर मिटें सभी मेवाड़ी वीर सिपाही

रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पाई

गोरा-बादल के शव पर भारत माता रोई थी

उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणिया खोईं थी

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी

जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||

सोमवार, 4 मई 2020

है नमन उनको

है नमन उनको कि जो
यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की
जीवित कहानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके
सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर
आसमानी हो गये हैं

है नमन उस देहरी को
जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप
की राजधानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके
सामने बौना हिमालय

हमने भेजे हैं सिकन्दर
सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिड़ते हैं वो जिनका
मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना
अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दाँतों से गिनती
सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में
क्या गजब है क्या नया है

जूझना यमराज से
आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर
एक नचिकेता गया है

है नमन उनको कि जिनकी
अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे
पानी पानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके
सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर
आसमानी हो गये हैं

लिख चुकी है विधि तुम्हारी
वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के
कथन तुमको नमन है

राखियों की प्रतीक्षा
सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन
के सपन तुमको नमन है

बहन के विश्वास भाई
के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित
माँ के नयन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनको
काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर
और मानी हो गये हैं

कंचनी तन, चन्दनी मन,
आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब
कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनके
सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर
आसमानी हो गये

बुधवार, 3 जनवरी 2018

एक तुम्हारा होना

एक तुम्हारा होना
क्या से क्या कर देता है
बेजुबान छत‚ दीवारों को
घर कर देता है।

खाली शब्दों में
आता है
ऐसा अर्थ पिरोना
गीत वन गया-सा
लगता है 
घर का कोना-कोना
एक तुम्हारा होना
सपनों को स्वर देता है।

आरोहों अवरोहों से
समझाने
लगती हैं
तुमसे जुड़कर
चीजें भी
बतियाने लगती हैं
एक तुम्हारा होना
अपनापन भर देता है
एक तुम्हारा होना
क्या से क्या कर देता है।


English Translation

Just your presence,
what an impact it has!
Makes the home out of
mute walls and ceilings!

Even to bare words,
you impact significant meaning!
Every nook and corner of home seems
to be singing now!
Just your presence,
gives voice to [my] dreams!

Stairs going up and stairs going down
talk to each other!
Connecting you, things too
talk to each other!
Just your presence,
makes me feel loved!
Just your presence,
what an impact it has!

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं

धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है

सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं

चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही

उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं

ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो

प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा

युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं




English Translation

We don't accept this new year
This is not our festival
This is not our custom
This is not our way of life

Earth is shivering from cold
Sky is very foggy
Borders of gardens and markets are
guarded by the Chilled air

Nature's cradle is barren
There is no colour, no enthusiasm
Everyone is crouched within home
This is no way for a new year

Wait for a few months
Think about it a little
New year must bring something new, doesn't it?
Why forget common sense in copying something

Everyone's heart is low on joy
It isn't spring season yet
We don't accept this new year
This is not our festival

Let the fog clear
Let darkness limit
Let Nature's beauty shine
Let colours of Spring open up

When Nature will shower love
like newlywed bride
Mother earth, our lush green earth
bring joy to everyone

Only then on first day of Chaitra Shukla month
we will celebrate new year
On blessed land of Aryavrat
song of victory will be sung

Self-sufficient logically and in implication
Our new work will be popular
As Arya's legacy lives on
New year is the first day of Chaitra Shukla month

Inheritors of invaluable inheritance
don't want any loan [festival]
We don't accept this new year
This is not our festival
This is not our custom
This is not our festival

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

स्त्रीलिंग-पुल्लिंग

काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंग,
दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग।

ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर ग़लती की है,
मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है।

कह काका कवि पुरूष वर्ग की क़िस्मत खोटी,
मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी।

दुल्हन का सिन्दूर से शोभित हुआ ललाट,
दूल्हा जी के तिलक को रोली हुई अलॉट।

रोली हुई अलॉट, टॉप्स, लॉकेट, दस्ताने,
छल्ला, बिछुआ, हार, नाम सब हैं मर्दाने।

पढ़ी लिखी या अपढ़ देवियाँ पहने बाला,
स्त्रीलिंग ज़ंजीर गले लटकाते लाला।

लाली जी के सामने लाला पकड़ें कान,
उनका घर पुल्लिंग है, स्त्रीलिंग है दुकान।

स्त्रीलिंग दुकान, नाम सब किसने छाँटे,
काजल, पाउडर, हैं पुल्लिंग नाक के काँटे।

कह काका कवि धन्य विधाता भेद न जाना,
मूँछ मर्दों को मिली, किन्तु है नाम जनाना।

ऐसी-ऐसी सैंकड़ों अपने पास मिसाल,
काकी जी का मायका, काका की ससुराल।

काका की ससुराल, बचाओ कृष्णमुरारी,
उनका बेलन देख काँपती छड़ी हमारी।

कैसे जीत सकेंगे उनसे करके झगड़ा,
अपनी चिमटी से उनका चिमटा है तगड़ा।

मन्त्री, सन्तरी, विधायक सभी शब्द पुल्लिंग,
तो भारत सरकार फिर क्यों है स्त्रीलिंग?

क्यों है स्त्रीलिंग, समझ में बात ना आती,
नब्बे प्रतिशत मर्द, किन्तु संसद कहलाती।

काका बस में चढ़े हो गए नर से नारी,
कण्डक्टर ने कहा आ गई एक सवारी।

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

उठो धरा के अमर सपूतों

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नई प्रात है नई बात है
नया किरन है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में
नई-नई मुस्कान भरो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो ।।1।।

डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें
मस्त उधर मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नव गान भरो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो ।।2।।

कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुँजित जग-उद्यान करो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो ।।3।।

सरस्वती का पावन मंदिर
शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
तुममें से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो ।।4।।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

नीड़ का निर्माण फिर फिर

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,

रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आ‌ई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगा‌ए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;

एक चिड़िया चोंच में तिनका
लि‌ए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!

नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मेरा परिचय

हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

नाम उसका राम होगा

गगन के उस पार क्या
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार, जग
जिस पर थमा आधार क्या है?

दीप तारों की जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चांद सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?

चाहता है सिन्धु किस पर
जल चढ़ा कर मुक्त होना?
चाहता है मेघ किसके
चरण को अविराम धोना?

तिमिरं-पलकें खोल कर
प्राची दिशा से झाँकती है?
माँग में सिन्दुर दें
ऊषा किसे नित ताकती है?

गगन में सन्ध्या समय
किसके सुयश का गान होता?
पक्षियों के राग में किस
मधुर का मधु-दान होता?

पवन पंखा झल रहा है
गीत कोयल गा रही है
कौन है, किसमें निरंतर
जग-विभुति समा रही है?

यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होग
ह्रुदय उसका धाम होगा
नाम उसका राम होगा


English Translation

What is on other side of the sky?
What is on other side of inferno?
What is beyond horizon?
What is base on which the world is supported?

By lightening the lamps of star
Who daily makes Diwali?
Rotating Sun and Moon
Whom do they worship?

On whose feet does the Ocean
want to pour water and gain Nirvana?
Whose feet do the clouds
want to wash continuously?

Opening its dark eyes,
Early morning peaks from East
Donning Vermillion on its head,
Who does morning wait for?

In the sky, in the evening
Whose glory is sung?
In the singing of birds,
Whose sweet voice is reflected?

The Wind is fanning [whom],
Cuckoo is singing [for whom],
Who is to continuously
The World is moving towards?

If he were to materialize
That would be pride of Avadh
He shall reside in our hearts
and He shall be called Ram